Nepal protests: नेपाल की राजनीति में बड़ा भूचाल तब आया जब प्रधानमंत्री केपी ओली ने अचानक इस्तीफा दे दिया। यह इस्तीफा साधारण नहीं था, बल्कि सेना के दबाव के बाद लिया गया निर्णय था। सेना का कहना था कि हालात लगातार बिगड़ रहे हैं और प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए स्थिति को संभालना संभव नहीं है। इसके बाद ओली ने राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल को इस्तीफा सौंपा, जिसे मंजूरी भी मिल गई। इस्तीफे के बाद अब देश में सत्ता का नया संकट खड़ा हो गया है। राजनीतिक हलकों में यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या अब नेपाल की सत्ता सीधे सेना के हाथ में जाएगी या कोई नई सरकार गठित होगी। इस घटनाक्रम ने नेपाल की जनता को और असमंजस में डाल दिया है, क्योंकि बीते कुछ सालों से देश लगातार राजनीतिक अस्थिरता और सत्ता संघर्ष से जूझ रहा है।

संसद और राष्ट्रपति आवास पर हमले
सोशल मीडिया बैन को लेकर शुरू हुआ विरोध अचानक हिंसा में बदल गया। सोमवार को हजारों प्रदर्शनकारियों ने राजधानी काठमांडू की सड़कों पर कब्जा कर लिया। भीड़ इतनी उग्र हो गई कि संसद भवन पर हमला किया और उसे आग के हवाले कर दिया। इसके बाद गुस्साई भीड़ राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल के निजी आवास तक पहुंच गई। वहां तोड़फोड़ हुई और आगजनी की घटनाएं सामने आईं। हालात इतने बिगड़े कि सुरक्षा बलों को गोलियां चलाने तक की चेतावनी देनी पड़ी। इधर, प्रदर्शनकारियों ने कम्युनिस्ट पार्टी मुख्यालय और कई बड़े नेताओं के घरों पर भी हमला किया। पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल ‘प्रचंड’ का घर भी उपद्रवियों के निशाने पर रहा। इन घटनाओं से साफ है कि जनता का गुस्सा सिर्फ सोशल मीडिया बैन तक सीमित नहीं है बल्कि लंबे समय से पनप रहे असंतोष का विस्फोट है।
सेना का दबाव और पीएम की कठिन स्थिति
इस्तीफे से पहले ओली ने नेपाली सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिग्देल से मुलाकात की थी। सूत्रों के मुताबिक उन्होंने सेना से कहा था कि हालात नियंत्रण से बाहर हो रहे हैं और सरकार अकेले इसे काबू नहीं कर सकती। यहां तक कि उन्होंने सुरक्षित बाहर निकलने में सेना की मदद भी मांगी थी। सेना का साफ संदेश था कि अगर प्रधानमंत्री इस्तीफा नहीं देते तो हालात और बिगड़ेंगे। सेना ने स्पष्ट कहा कि “यदि पीएम पद छोड़ते हैं तो हम स्थिति संभालने को तैयार हैं।” इस दबाव के बीच ओली के पास पद छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। इस्तीफा देकर उन्होंने भले ही अपना रास्ता अलग किया, लेकिन इससे नेपाल की राजनीति में भूचाल आ गया। अब सेना और राष्ट्रपति के बीच सत्ता संतुलन को लेकर नए सवाल खड़े हो गए हैं।

जनता से अपील और शांति की उम्मीद
इस्तीफे के बाद भी ओली ने जनता से संयम बरतने की अपील की। उन्होंने देश के नाम संबोधन में कहा, “मैं कल राजधानी और देश के विभिन्न हिस्सों में हुए विरोध प्रदर्शनों और उसके बाद की घटनाओं से दुखी हूं. हमारी नीति है कि किसी भी तरह की हिंसा देश के हित में नहीं है और हम शांतिपूर्ण और बातचीत के ज़रिए समाधान चाहते हैं. स्थिति का आकलन करने और सार्थक समाधान खोजने के लिए मैं संबंधित पक्षों से बातचीत कर रहा हूं. इसके लिए मैंने आज शाम 6 बजे सभी राजनीतिक दलों की बैठक भी बुलाई है. मैं सभी भाई-बहनों से विनम्र निवेदन करता हूं कि इस मुश्किल समय में शांत रहें.”

हालांकि, विरोधियों का कहना है कि यह अपील बहुत देर से आई। जनता का गुस्सा उस समय भड़क गया था जब सरकार ने 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगाने का फैसला किया था। हालांकि सरकार ने बाद में अपना फैसला वापस ले लिया, लेकिन तब तक लोगों का भरोसा डगमगा चुका था। भीड़ अब सिर्फ सोशल मीडिया की आज़ादी नहीं बल्कि राजनीतिक बदलाव की मांग कर रही है।

नेपाल राजनीति में भूचाल की असली वजह
विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा संकट की जड़ें गहरी हैं। नेपाल लंबे समय से राजनीतिक अस्थिरता, बेरोजगारी और आर्थिक संकट से गुजर रहा है। बार-बार सरकार बदलने और भ्रष्टाचार के आरोपों ने जनता का धैर्य तोड़ दिया है। सोशल मीडिया बैन महज एक चिंगारी थी जिसने गुस्से की आग को भड़का दिया। इस बार जो स्थिति बनी है, उसमें सेना का सीधा हस्तक्षेप नेपाल के लोकतंत्र के लिए गंभीर संकेत है। अगर सेना सत्ता अपने हाथों में लेती है तो नेपाल का लोकतांत्रिक ढांचा और कमजोर हो सकता है। अब यह देखना होगा कि राष्ट्रपति और सेना मिलकर देश को स्थिरता की ओर ले जा पाएंगे या संकट और गहराएगा।

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