Waqf Bill: वक्फ संशोधन कानून 2025 के खिलाफ दायर 72 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पूरी हो गई है. अब मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस आगस्टिन जार्ज मसीह की पीठ ने केंद्र सरकार और याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है. याचिकाकर्ताओं ने नए कानून पर रोक लगाने की मांग की थी. सुनवाई के दौरान, सीजेआई गवई ने कहा कि हिंदू धर्म में भी मोक्ष की अवधारणा है और दान अन्य धर्मों में इसी तरह के प्रावधानों का उल्लेख किया.

वक्फ कानून पर किन बदलाओं में आपत्ति?
रजिस्ट्रेशन
वक्त संशोधन कानून 2025 के खिलाफ याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पूरी हो गई है और इसमें याचिकार्ताओं ने नए कानून के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताई है. उनका कहना है कि ये बदलाव वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और संरक्षण के तरीके को प्रभावित करेंगे और समुदाय के हितों को नुकसान पहुंचाएंगे. याचिकाकर्ताओं ने अनिवार्य रजिस्ट्रेशन प्रावधान पर आपत्ति जताई है, जिसमें कहा गया है कि पुरानी संपत्तियों के लिए आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध नहीं हो सकते हैं और अगर यह दस्तावेज नहीं दिए तो संपत्ति वक्फ के रुप में मान्यता प्राप्त नहीं होगी और तो संपत्ति वक्फ के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं होगी और सरकार के पास जा सकती है.
सरकारी अधिकारी
याचिकाकर्ताओं ने सरकारी अधिकारी को यह अधिकार देने वाले प्रावधान पर आपत्ति जताई है और वह यह तय कर सकता है कि वक्फ संपत्तियों ने सरकारी भूमि पर अतिक्रमण किया है या नहीं. इससे वक्फ संपत्तियों की स्थिति प्रभावित हो सकती है.

सिद्धांत को समाप्त
नए संशोधनों ने इस सिद्धांत को समाप्त कर दिया है जो वक्फ संपत्तियों की शाश्वतता को प्रभावित कर सकता है.
वक्फ बोर्डों में गैर-मुसलमानों की भागीदारी
याचिकाकर्ताओं ने इन निकायों में गैर-मुसलमानों के नामांकन की अनुमति देने वाले प्रावधानों पर आपत्ति जताई है जो समुदाय के प्रबंधन और हितों को प्रभावित किया है.
केंद्र आपत्तियों पर क्या कहा?
केंद्र सरकार की ओर से पक्ष रखने के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि याचिकाकर्ता व्यक्तिगत रूप से इस कानून से प्रभावित नहीं हैं और वह पूरे मुस्लिम समाज का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं. उन्होंने तर्क दिया है कि वह पूरे मुस्लिम समाज का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं. उन्होंने आगे कहा कि वक्फ कानून में 1923 से ही कमी चली आ रही थी जिसे दुरूस्त किया गया है.
तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि रजिस्ट्रेशन के लिए 6 महीने का समय दिया गया है अगर कोई संपत्ति या वक्फ बाय यूजर रिजिस्टर्ड नहीं है तो उसके पास अभी भी समय है. उन्होंने कहा कि सिर्फ मुस्लिम ही वक्फ कर सकता है. साल 2013 में चुनाव से पहले कानून को बनाया गया उसमें सरकार ने सुधार किया और यही वज़ह है कि वक्फ करने के लिए कम से कम 5 साल से इस्लाम धर्म का पालन करने का शर्त है.

Sc ने लिया ये फैसला
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वक्फ एक इस्लामिक अवधारणा है और वक्फ बोर्ड धर्मानिरपेश की तरह काम करते इसलिए गैर-मुसलमानों को शामिल करने से कामकाज प्रभावित नहीं होगा. वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल किए जाने पर एसजी तुषार मेहता ने कहा कि कानून का सेक्शन 29 कहता है कि बोर्ड की सीईओ गैर- मुस्लिम भी हो सकता है. याचिकाकर्ता ने आदिवासी जमीन पर वक्फ बोर्ड को दावे रोकने जैसी बातों का भी विरोध किया है और इस पर सरकार ने कोर्ट को बताया कि कई ट्राइबल ऑर्गेनाइजेशन ने दलील दी है और उनको प्रताड़ित किया गया और वक्फ के नाम पर उनकी प्रताड़ित किया जाता और वक्फ के नाम पर उनकी जमीन हड़प ली.
एजसी मेहता ने कोर्ट में कहा कि -” वक्फ का मतलब है कि खुदा के लिए स्थाई समर्पण. मान लो मैंने जमीन बेची और पाया गया कि अनुसूचित जनजाति के शख्त के साथ धोखा हुआ है तो इस मामले में जमीन वापस की जा सकती है, लेकिन वक्फ अपरिवर्तनीय है.” कोर्ट ने 100 से ज्यादा याचिकाकर्ता कानून को चुनौती देने पहुंचे थे, लेकिन पूर्व सीजेआई संजीव खन्ना ने इनकी संख्या सीमित करके 5 कर दी. 16 अप्रैल को पहली सुनवाई में 72 याचिकाओं पर सुनवाई की थी , लेकिन फिर जस्टिस खन्ना ने निर्देश दिया कि अगली सुनवाई में सिर्फ 5 पर ही सुनवाई होगी क्योंकि सबमें लगभग एक सी ही बातें है.
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