Monday, August 25, 2025

37 ट्रिलियन डॉलर कर्ज में डूबा अमेरिका: भारत पर ट्रंप की टैरिफ धमकी का असली खेल, क्या टैरिफ से चुकाएंगे लोन?

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Hemant Raushan
Hemant Raushan
Delhi-based content writer at The Rajdharma News, with 5+ years of UPSC CSE prep experience. I cover politics, society, and current affairs with a focus on depth, balance, and fact-based journalism.

US Treasury Department: अमेरिका, जिसे दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कहा जाता है, इस समय 37 ट्रिलियन डॉलर के कर्ज में डूबा हुआ है। अमेरिकी ट्रेजरी डिपार्टमेंट की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, यह कर्ज इतना अधिक है कि अगर चीन, जर्मनी, भारत और जापान की पूरी जीडीपी को जोड़ दिया जाए, तब भी यह आंकड़ा पार हो जाएगा। भारतीय मुद्रा में देखें तो यह करीब 3236 लाख करोड़ रुपये के बराबर है। आंकड़ों के मुताबिक, अमेरिका के हर नागरिक पर लगभग 1 लाख डॉलर यानी 87 लाख रुपये से अधिक का कर्ज है। यह स्थिति बताती है कि आर्थिक ताकत होने के बावजूद, अमेरिका वित्तीय संकट के बड़े खतरे की ओर बढ़ रहा है।

कर्ज बढ़ने के कारण और कोविड का असर

किसी भी देश पर कर्ज तब बढ़ता है जब उसका खर्च उसकी कमाई से ज्यादा हो। अमेरिका के मामले में यह असंतुलन कई दशकों से बना हुआ है। मान लीजिए, अमेरिका 100 रुपये की कमाई करता है, लेकिन उसका खर्च 120 रुपये है, तो यह 20 रुपये का घाटा सीधे कर्ज में जुड़ जाता है। 2019 तक अमेरिका पर 27 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज था, लेकिन कोविड-19 महामारी के बाद यह तेजी से बढ़ा और सिर्फ कुछ सालों में 10 ट्रिलियन डॉलर और जुड़ गया। महामारी के दौरान राहत पैकेज, स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च और आर्थिक प्रोत्साहन योजनाओं ने इस कर्ज को और गहरा कर दिया।

दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से भी अधिक कर्ज

अमेरिका की जीडीपी लगभग 30 ट्रिलियन डॉलर है, जो उसे दुनिया का नंबर वन बनाती है। लेकिन कर्ज के मामले में यह स्थिति उलट है। चीन की जीडीपी 19.23 ट्रिलियन डॉलर, जर्मनी की 4.74, भारत की 4.19 और जापान की 4.19 ट्रिलियन डॉलर है। इन चारों देशों की संयुक्त जीडीपी 32.35 ट्रिलियन डॉलर होती है, जो अमेरिका के 37 ट्रिलियन डॉलर के कर्ज से भी कम है। यह तुलना बताती है कि अमेरिकी वित्तीय ढांचे में समस्या कितनी गंभीर हो चुकी है और इसे हल करना आसान नहीं होगा।

ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी और भारत पर दबाव

डोनाल्ड ट्रंप, राष्ट्रपति बनने से पहले ही, टैरिफ को आर्थिक हथियार की तरह इस्तेमाल करने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने भारत और ब्राजील पर 50% तक का टैरिफ लगाया है। 8 अगस्त से अमेरिका ने कई उत्पादों पर 25% टैरिफ वसूलना शुरू किया और 27 अगस्त से रूस से तेल आयात पर अतिरिक्त 25% शुल्क लगाने का ऐलान किया। माना जा रहा है कि ट्रंप का मकसद रूस की अर्थव्यवस्था को कमजोर करना है, ताकि रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त हो सके। पहले चीन पर दबाव बनाया गया, लेकिन उसने रूस से तेल खरीदना बंद नहीं किया। अब भारत पर यह दबाव डाला जा रहा है, लेकिन भारत अपने रुख पर अडिग है।

भारत का कर्ज और आर्थिक स्थिति

31 मार्च 2025 तक भारत पर 185.11 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था, जो अगले वित्त वर्ष के अंत तक 200.16 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। हालांकि यह आंकड़ा अमेरिका के कर्ज के मुकाबले काफी कम है। भारत एक तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है और वैश्विक स्तर पर अपनी व्यापारिक ताकत बढ़ा रहा है। इसके बावजूद, ट्रंप लगातार भारत को निशाना बना रहे हैं। असल में, यह सिर्फ आर्थिक मुद्दा नहीं बल्कि भू-राजनीतिक दबाव की रणनीति भी है। भारत, रूस से तेल खरीदना जारी रखकर यह संदेश दे रहा है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा।

क्या टैरिफ से चुकाया जा सकेगा कर्ज?

आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि टैरिफ से अमेरिका को अल्पकालिक राजस्व में बढ़ोतरी हो सकती है, लेकिन 37 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज चुकाने के लिए यह पर्याप्त नहीं है। इसके लिए आर्थिक सुधार, खर्च में कटौती, घरेलू उत्पादन में वृद्धि और निर्यात को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। ट्रंप का टैरिफ दांव अधिकतर चुनावी और राजनीतिक संदेश देने के लिए है, न कि वास्तविक कर्ज निपटाने की योजना के लिए। वहीं, भारत के लिए यह समय है कि वह अपने निर्यात बाजारों को विविध बनाए और अमेरिकी टैरिफ के असर को कम करने के लिए नए व्यापारिक साझेदार तलाशे।

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