Tuesday, August 26, 2025

उपराष्ट्रपति चुनाव 2025: सीपी राधाकृष्णन की उम्मीदवारी से बीजेपी का बड़ा दांव, क्या विपक्ष टूटेगा?

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Hemant Raushan
Hemant Raushan
Delhi-based content writer at The Rajdharma News, with 5+ years of UPSC CSE prep experience. I cover politics, society, and current affairs with a focus on depth, balance, and fact-based journalism.

INDIA alliance: उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 में बीजेपी ने महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को अपना उम्मीदवार बनाकर बड़ा राजनीतिक संदेश दिया है। यह फैसला अचानक आया, लेकिन इसके पीछे सोची-समझी रणनीति छिपी हुई है। पार्टी का इरादा सिर्फ चुनाव जीतना नहीं है, बल्कि ओबीसी राजनीति और दक्षिण भारत में अपनी पकड़ मजबूत करना भी है। राधाकृष्णन संघ से जुड़े हुए नेता हैं और लंबे समय से संगठन में सक्रिय रहे हैं। ऐसे में उनकी उम्मीदवारी बीजेपी की उस नीति को भी दर्शाती है, जिसमें पार्टी संवैधानिक पदों पर संघनिष्ठ नेताओं को प्राथमिकता देती रही है।

विपक्षी एकता पर मंडराता संकट

सीपी राधाकृष्णन की उम्मीदवारी का असर विपक्षी एकता पर साफ देखा जा सकता है। विपक्षी दल पहले से ही राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में एकजुट नहीं रह पाए हैं। पिछली बार भी कई दलों ने अलग-अलग रुख अपनाया था। इस बार भी वही स्थिति बनती दिख रही है। तमिलनाडु की डीएमके जैसे दल अपने राज्य के उम्मीदवार के सामने उलझन में हैं। सवाल यह है कि क्या वे “अपने राज्य के नेता” का सम्मान करेंगे या केंद्र की राजनीति को ध्यान में रखते हुए विपक्ष के साथ रहेंगे। यही दुविधा विपक्ष की एकजुटता को कमजोर कर सकती है।

डीएमके और दक्षिण भारत की राजनीति

तमिलनाडु की राजनीति में यह चुनाव बेहद अहम है। डीएमके के पास लोकसभा में 32 सांसद हैं और उसका फैसला पूरे समीकरण को प्रभावित कर सकता है। यदि डीएमके एनडीए प्रत्याशी का समर्थन करती है, तो विपक्षी एकता को गहरा झटका लगेगा। वहीं, यदि विरोध का रास्ता चुनती है तो बीजेपी इसे चुनावी हथियार बना सकती है। दक्षिण भारत में बीजेपी का वोट बैंक सीमित है, लेकिन राधाकृष्णन जैसे चेहरे को आगे कर पार्टी भविष्य की रणनीति साफ कर रही है। खासकर 2026 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए यह कदम पार्टी के लिए लाभकारी साबित हो सकता है।

आंकड़ों का गणित और समीकरण

चुनाव जीतने के लिए कुल 781 निर्वाचित सांसदों में से 391 वोटों की जरूरत है। लोकसभा में 542 सांसद हैं और राज्यसभा में 239 सदस्य मौजूद हैं। मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक एनडीए के पास करीब 427 सांसदों का समर्थन है, जबकि विपक्षी इंडिया गठबंधन के पास लगभग 355 सांसदों का समर्थन है। हालांकि, इनमें से 130 से ज्यादा सांसद अभी भी किसी स्पष्ट निर्णय पर नहीं पहुंचे हैं। यही सांसद चुनाव में गेमचेंजर साबित हो सकते हैं। यदि क्रॉस वोटिंग होती है, तो मुकाबला रोमांचक हो सकता है। लेकिन फिलहाल संख्याबल एनडीए के पक्ष में ज्यादा मजबूत दिख रहा है।

सीपी राधाकृष्णन का राजनीतिक सफर

सीपी राधाकृष्णन का लंबा राजनीतिक और संगठनात्मक अनुभव उनकी उम्मीदवारी को और भी अहम बनाता है। वे 2004 से 2007 तक बीजेपी तमिलनाडु के प्रदेश अध्यक्ष रहे। इसके बाद झारखंड और महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में काम किया। उन्होंने बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में पढ़ाई की और राजनीति में आने से पहले व्यवसाय से जुड़े थे। संघ और जनसंघ से जुड़े रहने के कारण वे हमेशा संगठनात्मक कामकाज में सक्रिय रहे। राधाकृष्णन का नाम यह भी दर्शाता है कि बीजेपी सिर्फ चुनावी लाभ नहीं देख रही, बल्कि ऐसे नेताओं को आगे ला रही है जिनकी जमीनी पकड़ मजबूत हो।

उपराष्ट्रपति चुनाव की असली जंग

यह चुनाव सिर्फ एक संवैधानिक पद का चुनाव नहीं है, बल्कि आने वाले वर्षों की राजनीति का संकेत भी है। बीजेपी ने राधाकृष्णन को उतारकर दक्षिण भारत और ओबीसी वोट बैंक को साधने की कोशिश की है। वहीं विपक्ष अब तक अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं कर पाया है। विपक्ष की देरी और आंतरिक मतभेद एनडीए के लिए वरदान साबित हो सकते हैं। अगर डीएमके जैसे बड़े दल बीजेपी प्रत्याशी का समर्थन करते हैं, तो विपक्ष की एकजुटता और ज्यादा कमजोर हो जाएगी। अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि विपक्ष किस रणनीति के साथ मैदान में उतरता है और क्या वह एनडीए के आंकड़ों को चुनौती दे पाएगा।

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