Monday, August 4, 2025

‘मर्द होते तो वर्दी पहनते…’ जब राकेश सर, नीतू मैम और अभिनय सर भिड़ गए दिल्ली पुलिस से – जानिए पूरा मामला

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SSC Protest: 31 जुलाई को दिल्ली की सड़कों पर कुछ अलग ही नज़ारा देखने को मिला। SSC की तैयारी कराने वाले देश के टॉप टीचर प्रदर्शन करते नज़र आए। छात्रों की समस्याओं को लेकर ये शिक्षक कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DOPT) के ऑफिस पहुँचे थे। इनका मकसद SSC की गड़बड़ियों को लेकर मंत्री से मुलाकात करना था। राकेश यादव, नीतू सिंह, अभिनय शर्मा, और आदित्य सर जैसे शिक्षक इस प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे थे। लेकिन जब उन्हें गेट पर रोक दिया गया, तो माहौल बदल गया। पुलिस से बातचीत के दौरान अचानक एक वाक्य सामने आया जिसने सबका ध्यान खींच लिया – “मर्द होते तो वर्दी पहनते…”

पुलिस और शिक्षकों के बीच मर्दानगी की बहस कैसे छिड़ी

प्रदर्शन शांति से शुरू हुआ था। शिक्षक मंत्री जितेंद्र सिंह से मिलने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन तभी एक पुलिस इंस्पेक्टर ने माहौल गर्म कर दिया। उन्होंने यूनिफॉर्म की तरफ इशारा करते हुए कहा – “पहनते तो पता चलता मर्द कौन है।” इसके जवाब में अभिनय शर्मा ने कहा, “वर्दी पहन कर उतार दी है, लाखों बच्चों को वर्दी पहनाई है।” इसी बात से बवाल और बढ़ गया। बहस अब SSC की गड़बड़ियों से हटकर मर्दानगी पर आ गई। इस दौरान गेट के पास “टीचर का सम्मान करो” जैसे नारे भी लगे। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हुआ और देशभर में इस लाइन पर बहस छिड़ गई।

SSC की भर्ती प्रक्रिया में क्या हैं गड़बड़ियां?

इस प्रदर्शन के पीछे छात्रों का आक्रोश सिर्फ जुबानी नहीं था, बल्कि ठोस कारणों पर आधारित था। SSC ने हाल ही में Selection Post Phase 13 के तहत भर्ती प्रक्रिया शुरू की थी, जिसमें अचानक वेंडर बदल दिया गया। इस बदलाव के बाद, परीक्षा केंद्रों में तकनीकी दिक्कतें सामने आईं। कई छात्रों को उनके परीक्षा स्थल 700 से 1000 किमी दूर दे दिए गए। कुछ को तो परीक्षा देने ही नहीं दी गई। कई परीक्षा केंद्रों पर छात्रों के साथ दुर्व्यवहार की भी खबरें सामने आईं। इन्हीं सब शिकायतों को लेकर शिक्षक DOPT पहुंचे थे, लेकिन सरकार की चुप्पी ने उनकी नाराज़गी और बढ़ा दी।

पुलिस का रवैया और शिक्षकों के साथ हुई कथित ज्यादती

जब शिक्षक गेट से हटने को तैयार नहीं हुए, तो पुलिस ने एक बस में उन्हें बैठा दिया। बताया नहीं गया कि उन्हें कहां ले जाया जा रहा है। बस कई घंटे दिल्ली की सड़कों पर घूमती रही। एक टीचर ने बताया कि महिला शिक्षकों को बाथरूम जाने की अनुमति तक नहीं दी गई। नीतू मैम ने वीडियो जारी कर बताया कि कुछ जगहों पर पुलिस ने धक्का-मुक्की भी की। यह बात कई स्टूडेंट्स और अभिभावकों को चौंकाने वाली लगी।

जंतर मंतर का प्रस्ताव और शिक्षकों की नाराज़गी

पुलिस ने शिक्षकों से कहा कि वे जंतर मंतर पर प्रदर्शन करें। लेकिन शिक्षकों ने इसे खारिज कर दिया। नीतू मैम ने कहा – “जंतर मंतर पर साल भर बैठो, फिर भी कोई सुनवाई नहीं होती।” शिक्षकों को यह रवैया अपमानजनक लगा। उनका मानना है कि जब शांतिपूर्ण बातचीत के लिए पहुंचे तो उन्हें सहयोग मिलना चाहिए। यह सिर्फ नौकरी की बात नहीं, लाखों युवाओं के भविष्य का सवाल है। अन्य टीचरों ने भी साफ कहा — “हम किसी शोपीस की तरह प्रोटेस्ट नहीं करेंगे, हमें समाधान चाहिए।” यह साफ संकेत था कि अब टीचर और छात्र सिर्फ औपचारिक विरोध से आगे बढ़ चुके हैं। वे अब बातचीत और कार्रवाई की उम्मीद लेकर आए थे, और उन्हें फिर से प्रतीक्षा में धकेला जा रहा था।

‘मर्द होते तो वर्दी पहनते’ सिर्फ शब्द नहीं, व्यवस्था के खिलाफ गूंजती आवाज़ है

“मर्द होते तो वर्दी पहनते…” अब केवल एक बयान नहीं रहा, यह उस सिस्टम के प्रति असंतोष की गूंज बन गया है जिसने छात्रों और शिक्षकों की आवाज़ को बार-बार नजरअंदाज किया है। जब देश के सबसे सम्मानित शिक्षक अपने छात्रों की लड़ाई में सड़कों पर उतरते हैं, तो यह केवल एक विरोध नहीं, बल्कि नई चेतना का संकेत होता है। राकेश सर, नीतू मैम, अभिनय सर और हजारों छात्रों की यह लड़ाई अब केवल सरकारी भर्तियों की अनियमितता को लेकर नहीं है, यह लड़ाई है सम्मान, जवाबदेही और न्याय की। इस आंदोलन ने यह भी दिखा दिया कि सोशल मीडिया, छात्रों और शिक्षकों की एकता आज भी सिस्टम को झकझोर सकती है। अब यह सरकार और प्रशासन पर है कि वो इस आवाज़ को सुने — या फिर अगली बार यह गूंज और भी बुलंद होगी।

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