Monday, August 4, 2025

“SSC Protest: ‘कब तक सहेंगे अन्याय?’ – SSC में धांधली के खिलाफ उठा छात्रों और शिक्षकों का तूफान”

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दिल्ली: दिल्ली में स्टाफ सिलेक्शन कमीशन (SSC) की परीक्षाओं को लेकर छात्रों और शिक्षकों का आक्रोश दिन-ब-दिन तेज़ होता जा रहा है। देशभर के प्रतिष्ठित शिक्षक—राकेश यादव, नीतू सिंह, अभिनव शर्मा और आदित्य सर—हज़ारों छात्रों के साथ दिल्ली की सड़कों पर उतर आए हैं। जंतर मंतर और CGO कॉम्प्लेक्स के पास ये प्रदर्शन जारी हैं। छात्रों की मांग है कि SSC की परीक्षाओं में लगातार सामने आ रही तकनीकी गड़बड़ियों और अव्यवस्थाओं को तुरंत ठीक किया जाए।

अभ्यर्थियों का आरोप है कि SSC प्रणाली में बार-बार पेपर लीक, गलत प्रश्न, परीक्षा के दौरान तकनीकी समस्याएं, और सेंटर रद्द होने जैसी घटनाएं हो रही हैं। इन कारणों से लाखों छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है। छात्रों की अपेक्षा है कि पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से परीक्षाएं आयोजित हों, ताकि उन्हें वर्षों की मेहनत का सही फल मिल सके।

प्रश्नपत्र और परीक्षा संचालन में कौन है ज़िम्मेदार?

SSC की परीक्षाओं के लिए अलग-अलग चरणों में अलग-अलग कंपनियों को ज़िम्मेदारी दी जाती है। प्रश्न बैंक बनाने का काम Cubastion Consulting Private Limited नाम की एक निजी कंपनी के पास है। लेकिन रिपोर्ट्स के अनुसार, यह कंपनी बार-बार गलत प्रश्न दे रही है, जिससे परीक्षा की गुणवत्ता पर सवाल उठते हैं। CBT (कंप्यूटर आधारित परीक्षा) के संचालन की ज़िम्मेदारी Eduquity नामक कंपनी को सौंपी गई है। पहले यह कार्य TCS करती थी, जो तकनीकी रूप से अधिक सक्षम मानी जाती है। वर्ष 2020 में Central Directorate General of Training ने Eduquity को अयोग्य घोषित किया था क्योंकि उनकी परीक्षाओं में बार-बार समस्याएं सामने आई थीं।

सस्ती बोली का दुष्परिणाम: क्या छात्रों की कीमत पर हो रहा है समझौता?

इसके बावजूद 2022 और 2023 में Eduquity को MP PET, MP Patwari और महाराष्ट्र CET जैसी कई परीक्षाओं का जिम्मा दिया गया, जिनमें गड़बड़ियों की खबरें आईं। इसके बाद भी SSC ने Eduquity को चुना, सिर्फ इसलिए क्योंकि कंपनी ने प्रति छात्र ₹220 में परीक्षा कराने का प्रस्ताव दिया, जबकि TCS ने ₹350 का। छात्रों और शिक्षकों का आरोप है कि यह “सस्ता सौदा” छात्रों के भविष्य को दांव पर लगा रहा है। Eduquity का डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर कमजोर है, जिससे तकनीकी समस्याएं आती हैं। जब परीक्षा प्रणाली ही भरोसेमंद नहीं है, तो निष्पक्ष चयन की उम्मीद करना बेकार है। SSC Phase 13 की परीक्षा में दो सेंटर्स पर परीक्षा रद्द करनी पड़ी और फिर से शेड्यूल करनी पड़ी। इससे छात्रों का भरोसा और भी डगमगा गया।

छात्रों का दर्द: मेहनत, उम्मीद और व्यवस्था की मार

यह लड़ाई उन छात्रों की है जो वर्षों से कड़ी मेहनत करते हैं, इस उम्मीद में कि एक दिन SSC की परीक्षा पास कर सरकारी नौकरी पाएंगे। अब यहाँ मुसीबत उन बच्चों के लिए है जो सालों से कड़ी मेहनत करते हैं, इस आस में की जब वो SSC की परीक्षा उचित तरीके से पास करेंगे तो सरकारी नौकरी मिलेगी, अपने परिवार का भविष्य सुरक्षित कर सकेंगे।लेकिन हर बार व्यवस्था की खामियों की कीमत उन्हें चुकानी पड़ रही है। लेकिन हर बार तकनीकी खराबी या प्रशासनिक लापरवाही उनकी मेहनत पर पानी फेर देती है।

परीक्षा रद्द होने से लेकर रिजल्ट में देरी तक, हर मोड़ पर छात्रों को मानसिक और शारीरिक तनाव का सामना करना पड़ता है। उम्र सीमा भी छात्रों के लिए एक बड़ी चुनौती है। SSC की परीक्षाओं में आयु सीमा तय होती है। अगर बार-बार की देरी और तकनीकी विफलताओं के कारण कोई छात्र यह सीमा पार कर जाता है, तो इसमें गलती किसकी मानी जाए? क्या सरकार इस नुकसान की कोई भरपाई करेगी?

प्रशासन की चुप्पी और पुलिस का रवैया

छात्रों और शिक्षकों की आवाज़ को दबाने की कोशिशें भी चर्चा में हैं। जब प्रदर्शनकारी मंत्री से मिलने पहुंचे, तो पुलिस ने उन्हें रोक दिया। किसी से मिलने नहीं दिया गया। कुछ शिक्षकों ने आरोप लगाया कि उन्हें जबरन बस में बैठाकर घंटों तक दिल्ली की सड़कों पर घुमाया गया। पुलिस और प्रशासन का यह व्यवहार छात्रों के लोकतांत्रिक अधिकारों पर सीधा हमला है। शिक्षकों का कहना है कि जब आवाज़ उठाना ही रोक दिया जाए, तो लोकतंत्र की नींव पर सवाल खड़ा होता है।

SSC जैसी प्रतिष्ठित संस्था की परीक्षाओं में इस तरह की गंभीर खामियां न केवल छात्रों का भविष्य खराब करती हैं, बल्कि देश की नौकरशाही व्यवस्था की साख पर भी सवाल खड़ा करती हैं। अब वक्त है कि सरकार सिर्फ जांच के नाम पर खानापूर्ति न करे, बल्कि ज़मीनी सुधार करे—वरना छात्रों का गुस्सा एक आंदोलन का रूप ले सकता है।

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