Satyapal Malik: जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने 5 अगस्त 2025 को दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में अंतिम सांस ली। वह पिछले कई महीनों से गंभीर रूप से बीमार चल रहे थे। मई 2025 से उन्हें RML अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उन्हें किडनी से जुड़ी गंभीर समस्या के चलते ICU में रखा गया था। इलाज के दौरान उनकी हालत कई बार नाजुक बनी रही। इसी बीच सोशल मीडिया पर उनके निधन की अफवाहें भी उड़ने लगी थीं, जिन्हें खुद सत्यपाल मलिक ने एक वीडियो जारी कर खारिज किया था। अब उनके निधन की खबर ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों को शोक में डुबो दिया है। उनके निधन की पुष्टि उनके निजी सचिव केएस राणा ने उनके एक्स हैंडल के माध्यम से की।

अनुच्छेद 370 के हटने के गवाह रहे थे सत्यपाल मलिक
सत्यपाल मलिक का नाम जम्मू-कश्मीर के सबसे अहम दौर से जुड़ा हुआ है। अगस्त 2018 से अक्टूबर 2019 तक वह राज्यपाल के पद पर रहे। यही वह समय था जब 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में आतंकी हमला हुआ और फिर कुछ ही महीनों बाद, 5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटा दिया। मलिक उस समय राज्य की कमान संभाल रहे थे और उन्होंने प्रशासनिक स्थिरता बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई। उस फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर की राजनीति और हालात में जो बदलाव आए, वह उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी पहचान बन गई।

पीएम मोदी ने व्यक्त की संवेदना
जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुख जताया है. पीएम मोदी ने एक्स पर लिखा- ‘सत्यपाल मलिक जी के निधन से दुखी हूं. इस दुख की घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और समर्थकों के साथ हैं. ॐ शांति.’
छात्र राजनीति से लेकर राज्यपाल बनने तक का सफर
सत्यपाल मलिक का जन्म 1946 में उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के हिसावदा गांव में हुआ था। उनके पिता बुद्ध सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनका देहांत सत्यपाल की बहुत छोटी उम्र में हो गया था। स्कूली पढ़ाई के बाद उन्होंने मेरठ कॉलेज से स्नातक और फिर वकालत की पढ़ाई की। इसी दौरान उन्हें छात्र राजनीति में दिलचस्पी हुई और साल 1967 में छात्रसंघ अध्यक्ष चुने गए। राजनीति में उनका असली प्रवेश 1974 में हुआ, जब वे भारतीय क्रांति दल के टिकट पर बागपत से विधानसभा चुनाव जीतकर विधायक बने। यह शुरुआत थी एक लंबे और घटनाओं से भरे राजनीतिक जीवन की।

चरण सिंह, कांग्रेस, जनता दल और फिर बीजेपी तक का सफर
सत्यपाल मलिक ने राजनीतिक जीवन में कई दलों का साथ देखा। 1980 में चरण सिंह ने उन्हें राज्यसभा भेजा। फिर 1984 में उन्होंने कांग्रेस जॉइन की और राजीव गांधी ने उन्हें दोबारा राज्यसभा भेजा। लेकिन बोफोर्स कांड के बाद उन्होंने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया। इसके बाद वे जनता दल में शामिल हुए और 1989 में अलीगढ़ से सांसद बने। वीपी सिंह सरकार में उन्हें मंत्री भी बनाया गया। फिर कुछ समय समाजवादी पार्टी में भी बिताया। वर्ष 2004 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा। हालांकि बीजेपी में शुरुआती दौर में उन्हें बहुत बड़ी भूमिका नहीं मिली, लेकिन उनकी पहचान एक वरिष्ठ जाट नेता के रूप में बनी रही। 2017 में उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया, और फिर 2018 में उन्हें जम्मू-कश्मीर की जिम्मेदारी दी गई।

सत्यपाल मलिक के बेबाक बोल और राजनीतिक बयान
अपने पूरे राजनीतिक करियर में सत्यपाल मलिक ने कई बार सत्ता पक्ष की आलोचना की। खासकर राज्यपाल पद से हटने के बाद उन्होंने केंद्र सरकार पर सीधे आरोप लगाए। पुलवामा हमले को लेकर भी उन्होंने कई गंभीर बयान दिए, जो मीडिया की सुर्खियां बने। वे किसानों के आंदोलन, सेना के मसले और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर भी खुलकर बोलते रहे। किसान आंदोलन के दौरान उन्होंने किसानों के पक्ष में बयान दिए और कृषि कानूनों की आलोचना करते हुए कहा था कि सरकार को संवाद के रास्ते समाधान निकालना चाहिए। उनका मानना था कि एक राजनेता को जनता के सवालों पर चुप नहीं रहना चाहिए। यही वजह थी कि कई बार उनके बयान भाजपा के लिए असहज भी साबित हुए। लेकिन सत्यपाल मलिक ने कभी अपने विचारों को छिपाया नहीं।

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