Tuesday, August 5, 2025

2025 चुनावी रणभूमि की तैयारी या गठबंधन की तलाश? पप्पू यादव बार-बार दिल्ली क्यों जा रहे?

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Bihar News: 2025 बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही सियासी हलचलें तेज हो गई हैं। खासकर पूर्णिया के निर्दलीय सांसद पप्पू यादव एक बार फिर सुर्खियों में हैं। पिछले कुछ महीनों से उनकी दिल्ली यात्राएं, कांग्रेस मुख्यालय में मौजूदगी और आरजेडी के खिलाफ तीखे बयान चर्चा में हैं। जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) का कांग्रेस में विलय कर चुके पप्पू यादव को लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं मिला था। इसके बावजूद उन्होंने निर्दलीय मैदान में उतरकर पूर्णिया से जीत हासिल की। लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस में उनकी स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई है, जिससे उनके राजनीतिक भविष्य पर असमंजस बरकरार है।

कांग्रेस में औपचारिक भूमिका की तलाश में दिल्ली के चक्कर

1 अगस्त को जब पप्पू यादव दिल्ली में कांग्रेस दफ्तर पहुंचे, तो यह उनकी पहली या आखिरी यात्रा नहीं थी। पिछले एक साल से वह कांग्रेस में औपचारिक भूमिका पाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अब तक कोई ठोस जिम्मेदारी नहीं मिल पाई है। कांग्रेस के बड़े नेताओं से वे लगातार संवाद में हैं। राहुल और प्रियंका गांधी की ‘लोकतंत्र बचाओ’ मुहिम में उनका समर्थन रहा है, लेकिन राजनीतिक मंच पर उनका स्थान अब भी तय नहीं हो सका है। यह असमंजस तब और बढ़ गया जब जुलाई की रैली में उन्हें मंच पर कन्हैया कुमार के साथ भी जगह नहीं दी गई। यह घटनाएं पप्पू यादव की नाराजगी और कांग्रेस के अंदर उनकी स्थिति को उजागर करती हैं।

आरजेडी से खुला टकराव, सीमांचल में गहराती सियासी खाई

पप्पू यादव और तेजस्वी यादव के बीच तनाव कोई नया नहीं है, लेकिन अब यह खुलकर सामने आ चुका है। 9 जुलाई को विपक्षी दलों की रैली में उन्हें मंच साझा करने से रोका गया। इसके बाद उन्होंने इसे ‘अपमान’ करार दिया। 24 जुलाई के एक इंटरव्यू में उन्होंने साफ तौर पर कहा, “अगर तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बने तो मुझे मरवा देंगे या मैं बिहार छोड़ दूंगा।” यह बयान न सिर्फ उनकी नाराजगी दिखाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि महागठबंधन में उनके लिए जगह बनाना आसान नहीं होगा।

सीमांचल में पप्पू यादव की मजबूत पकड़, कांग्रेस के लिए उम्मीद

कोसी और सीमांचल इलाके में पप्पू यादव की यादव, मुस्लिम और दलित वोटरों पर जबरदस्त पकड़ है। यह वही क्षेत्र है जहां कांग्रेस कमजोर रही है और आरजेडी का दबदबा रहा है। ऐसे में पप्पू यादव कांग्रेस के लिए इस इलाके में नई उम्मीद बन सकते हैं। उन्होंने अप्रैल में कांग्रेस से इन क्षेत्रों में ज्यादा सीटों की मांग की थी, लेकिन आरजेडी के पुराने रुख को देखते हुए उनकी मांग पर सहमति नहीं बन पाई। इससे पप्पू यादव को आशंका है कि उन्हें दोबारा किनारे किया जा सकता है, जैसा लोकसभा चुनाव में हुआ था। इसके बावजूद वह कांग्रेस में बने हुए हैं और लगातार नेतृत्व से संपर्क में हैं।

चुनाव आयोग पर सवाल, बिहार की पहचान पर ‘हमला’?

पप्पू यादव ने हाल ही में चुनाव आयोग पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि बिहार के 65 लाख मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाना केवल प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि राज्य की पहचान पर सीधा हमला है। उनका कहना है कि इस कदम से न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नुकसान पहुंचा है, बल्कि गरीब, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग के अधिकार भी खतरे में पड़ गए हैं। उन्होंने मांग की है कि चुनाव आयोग इस पूरे मामले की पारदर्शी जांच कराए और जिन मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं, उन्हें तुरंत सूची में शामिल किया जाए। इस मुद्दे को लेकर भी वह दिल्ली गए और राष्ट्रीय नेताओं से चर्चा की। उनका मानना है कि यह सिर्फ तकनीकी गलती नहीं, बल्कि एक सोची-समझी साजिश है, जिसका असर आने वाले चुनावों पर पड़ सकता है।

कांग्रेस की रणनीति और पप्पू यादव की जिद

अगर कांग्रेस 2025 विधानसभा चुनाव में 70 सीटों की मांग करती है, तो सीमांचल में पप्पू यादव की अनदेखी मुश्किल होगी। लेकिन तेजस्वी यादव के साथ उनकी तीखी तकरार कांग्रेस के लिए रणनीतिक दुविधा बन सकती है। एक तरफ वे जमीनी नेता हैं जिनके पास जनता से सीधा जुड़ाव है, दूसरी ओर गठबंधन की राजनीति में उनके लिए जगह बनाना पेचीदा हो गया है। अब सवाल यह है कि क्या कांग्रेस कोई नया रास्ता निकालेगी या फिर पप्पू यादव खुद को एक तीसरे विकल्प के रूप में प्रस्तुत करेंगे?

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