Sunday, August 10, 2025

जस्टिस यशवंत वर्मा को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका, नकदी मामले में याचिका खारिज

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सुप्रीम कोर्ट: इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा को सुप्रीम कोर्ट से तगड़ा झटका लगा है। उनके खिलाफ चल रहे नकदी मामले को लेकर दाखिल याचिका सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को खारिज कर दी। कोर्ट ने साफ कहा कि वर्मा का आचरण ऐसा नहीं है कि उस पर भरोसा किया जाए या उनकी याचिका पर विचार किया जाए। यह मामला उस समय सुर्खियों में आया था जब दिल्ली हाई कोर्ट में कार्यरत रहते हुए, उनके सरकारी आवास में आग लगने की घटना हुई थी। उस दौरान मौके पर पहुंचे अग्निशमन दल और पुलिस ने एक स्टोर रूम में जले हुए नोटों की गड्डियां बरामद की थीं। यह घटना न सिर्फ गंभीर थी, बल्कि न्यायपालिका की छवि पर सवाल भी खड़े कर रही थी।

सीजेआई ने गठित की थी आंतरिक जांच कमेटी, रिपोर्ट में वर्मा दोषी करार

इस पूरे प्रकरण के सामने आने के बाद तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने एक आंतरिक जांच कमेटी गठित की थी। तीन सदस्यीय समिति ने गहन जांच के बाद अपनी रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा को गंभीर कदाचार का दोषी माना और स्पष्ट कहा कि वह न्यायिक पद पर बने रहने योग्य नहीं हैं। रिपोर्ट आने के बाद सीजेआई ने वर्मा से स्वैच्छिक रूप से इस्तीफा देने या सेवानिवृत्ति लेने की सलाह दी थी। लेकिन जब उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया, तो रिपोर्ट को संस्तुति सहित राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दिया गया।

जस्टिस वर्मा ने उठाए थे जांच प्रक्रिया पर सवाल, सुप्रीम कोर्ट ने सब खारिज किया

जस्टिस वर्मा ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की। उन्होंने कहा कि जांच प्रक्रिया निष्पक्ष नहीं थी और सीजेआई की संस्तुति भी नियमों के खिलाफ थी। लेकिन कोर्ट ने उनकी सभी दलीलों को खारिज करते हुए साफ कहा कि वर्मा ने पहले जांच प्रक्रिया में भाग लिया और जब रिपोर्ट उनके खिलाफ आई तब आपत्ति जताई, जो कि स्वीकार्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आंतरिक जांच प्रक्रिया पूरी तरह कानूनी थी, और इसमें कोई प्रक्रिया संबंधी त्रुटि नहीं थी। साथ ही, सीजेआई द्वारा की गई संस्तुति भी न्याय व्यवस्था की गरिमा बनाए रखने के लिए जरूरी और उचित थी।

फोटो और वीडियो वेबसाइट पर डालने पर सवाल, लेकिन कोर्ट ने नहीं मानी आपत्ति

याचिका में यह भी कहा गया था कि जांच के दौरान जो फोटो और वीडियो वेबसाइट पर अपलोड किए गए, वह अनुचित थे और प्रक्रिया की गोपनीयता का उल्लंघन करते थे। इस पर कोर्ट ने कहा कि यह पहलू ज़रूरी नहीं था, लेकिन वर्मा ने उस समय कोई आपत्ति नहीं जताई थी, इसलिए अब इसे उठाने का कोई औचित्य नहीं बनता। कोर्ट ने दो टूक कहा कि पूरी जांच निष्पक्ष और संविधान सम्मत थी। सीजेआई को यह अधिकार है कि वे संस्था की साख बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम उठाएं।

अब संसद में महाभियोग की तैयारी, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विकल्प सीमित

सुप्रीम कोर्ट से राहत न मिलने के बाद जस्टिस वर्मा के लिए सभी कानूनी रास्ते लगभग बंद हो गए हैं। अब उनके खिलाफ संसद में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। वैसे तो सुप्रीम कोर्ट की प्रक्रिया और संसद की कार्यवाही स्वतंत्र होती हैं, लेकिन अगर वर्मा को कोर्ट से राहत मिल जाती तो उन्हें संसद में अपने पक्ष को मजबूती से रखने का आधार मिल जाता। अब बिना कोर्ट के समर्थन के, उनका बचाव और मुश्किल हो गया है।

सीजेआई का नैतिक और संवैधानिक दायित्व

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मुख्य न्यायाधीश केवल न्यायिक संस्थान के प्रमुख ही नहीं, बल्कि जनता के प्रति जवाबदेह संवैधानिक अधिकारी भी हैं। CJI को यह अधिकार है कि वह संस्था की छवि को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी कदम उठाएं। कोर्ट ने कहा कि संस्था की साख को नुकसान पहुंचाना, केवल एक व्यक्ति का मामला नहीं, बल्कि पूरे न्यायिक सिस्टम को हिला सकता है। जस्टिस यशवंत वर्मा नकदी मामला अब एक संवैधानिक परीक्षा बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब सारा दारोमदार संसद पर है।

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