Sunday, December 7, 2025

HAQ Film Story: जानें क्या हैं शाह बानो का केस? ऐतिहासिक लड़ाई जिसने बदला मुस्लिम महिलाओं का जीवन

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HAQ Film Story:इमरान हाशमी और यामी गौतम स्टारर फिल्म “हक” शाह बानो केस पर आधारित है, जो 7 नवंबर को रिलीज होने वाली है.यह फिल्म रिलीज से पहले ही चर्चा में है, और ट्रेलर सामने आने के बाद शाह बानो केस एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है. तो आज के इस आर्टिकल में हम आइए जानते हैं कि शाह बानो केस क्या है और क्यों यह इतना महत्वपूर्ण है.

HAQ Film Story (Photo credit -google)

1978 में हुई थी मामले की शुरुआत

शाह बानो केस की कहानी 1978 में शुरू हुई, जब एक 62 वर्षीय महिला शाह बानो ने अपने तलाकशुदा पति मोहम्मद अहमद खान के खिलाफ अदालत में याचिका दायर की. शाह बानो ने अपने पति से भरण-पोषण की मांग की, जो एक मशहूर वकील थे.यह मामला लगभग सात साल तक चला और भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मिसाल बन गया.शाह बानो की याचिका ने न केवल उनके जीवन को प्रभावित किया, बल्कि मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए भी एक बड़ा कदम साबित हुआ. इस केस ने समाज में महिलाओं के अधिकारों और न्याय के मुद्दों पर चर्चा को बढ़ावा दिया. बता दें कि मोहम्मद अहमद खान उस समय एक मशहूर और सबसे बड़े वकीलों में से एक थे.

HAQ Film Story (Photo credit -google)

शादी के 14 साल बाद की दूसरी शादी और दिया तलाक

शाह बानो और मोहम्मद अहमद खान की शादी 1932 में हुई थी, जिससे उनके पांच बच्चे हुए.हालांकि, 14 साल बाद मोहम्मद अहमद खान ने दूसरी शादी कर ली, जो इस्लामिक पर्सनल लॉ के तहत वैध थी. दोनों पत्नियां साथ में रहती थीं, लेकिन 1978 में मोहम्मद अहमद खान ने शाह बानो को तलाक दे दिया और उन्हें घर से बाहर निकाल दिया.तलाक के बाद, मोहम्मद अहमद खान ने शाह बानो को इद्दत की अवधि यानी तीन महिने (90 दिन) के लिए पैसे देने का वादा किया.

HAQ Film Story (Photo credit -google)

शाह बानो ने कानूनी तौर पर की भरण-पोषण की मांग जब मोहम्मद अहमद खान ने इद्दत की अवधि (3 महिने बाद) के बाद पैसे भेजना बंद कर दिया, तो शाह बानो ने इंदौर की अदालत में याचिका दायर की.उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 के तहत अपने और अपने पांच बच्चों के लिए भरण-पोषण की मांग की। यह धारा उन महिलाओं को अधिकार देती है जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं और अपने पति से तलाक या अलग होने के बाद सहायता की मांग कर सकती है. शाह बानो की इस याचिका ने एक महत्वपूर्ण कानूनी लड़ाई की शुरुआत की, जो आगे चलकर एक ऐतिहासिक फैसले का कारण बनी.

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सात साल‌ लंबी लड़ाई के बाद सुनाया गया फैसला

मोहम्मद अहमद खान ने शाह बानो की याचिका का जवाब देते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला दिया देते हुए दावा किया था कि उन्होंने इद्दत की अवधि के लिए पहले ही भुगतान कर दिया है, और इसके बाद उनकी जिम्मेदारी खत्म हो जाती है.ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी खान का समर्थन किया और कहा कि अदालतें मुस्लिम पर्सनल लॉ के मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती. बोर्ड ने तर्क दिया कि ऐसा करना मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 का उल्लंघन होगा. इस प्रकार, शाह बानो और मोहम्मद अहमद खान के बीच एक लंबी और जटिल कानूनी लड़ाई शुरू हुई, जो आगे चलकर लंबी कानूनी लड़ाई चली और एक महत्वपूर्ण कानूनी मिसाल कायम की.

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