Tuesday, August 26, 2025

भारत-नेपाल सीमा विवाद: लिपुलेख दर्रे पर क्यों भड़का नेपाल, कौन सी संधि बनी है आधार?

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Hemant Raushan
Hemant Raushan
Delhi-based content writer at The Rajdharma News, with 5+ years of UPSC CSE prep experience. I cover politics, society, and current affairs with a focus on depth, balance, and fact-based journalism.

New Delhi: भारत और नेपाल के बीच लिपुलेख दर्रे को लेकर विवाद एक बार फिर से गहरा गया है। भारत ने हाल ही में चीन के साथ लिपुलेख दर्रे के माध्यम से सीमा व्यापार फिर से शुरू करने का फैसला किया, जिस पर नेपाल ने कड़ी आपत्ति जताई। नेपाल का दावा है कि लिपुलेख उसका अभिन्न हिस्सा है। हालांकि, भारत ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि नेपाल का तर्क न तो उचित है और न ही ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है। यह विवाद 2020 में तब और बढ़ गया था जब नेपाल ने नया राजनीतिक नक्शा जारी कर कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख को अपने क्षेत्र के रूप में दिखाया। इस कदम का भारत ने कड़ा विरोध किया।

भारत-चीन सीमा व्यापार और नेपाल की आपत्ति

भारत और चीन ने मंगलवार को लिपुलेख दर्रे और अन्य व्यापारिक बिंदुओं के माध्यम से सीमा व्यापार बहाल करने पर सहमति जताई। नेपाल ने इस फैसले का विरोध करते हुए कहा कि यह इलाका उसका हिस्सा है और यहां किसी भी गतिविधि से पहले उसकी सहमति आवश्यक है। नेपाली विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर भारत और चीन दोनों से कहा कि वे लिपुलेख जैसे विवादित क्षेत्र में कोई भी व्यापारिक गतिविधि न करें। इसके जवाब में भारत ने दोहराया कि यह इलाका उसके अधिकार क्षेत्र में आता है और नेपाल का दावा केवल राजनीतिक मकसद से किया जा रहा है।

कोविड काल में विवाद ने पकड़ा जोर

दरअसल, सीमा विवाद का सबसे बड़ा मोड़ 2020 में आया। उस समय नेपाल ने नया मानचित्र जारी किया था जिसमें कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा को अपने हिस्से के रूप में शामिल किया गया। भारत ने इस कदम को अस्वीकार करते हुए कहा था कि यह ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत है। नेपाल ने यह मानचित्र अपने संविधान में भी शामिल कर लिया, जिससे विवाद और गहरा गया। काठमांडू लगातार यह मांग करता रहा है कि भारत इस क्षेत्र में सड़क निर्माण, विस्तार या व्यापारिक गतिविधियों को बंद करे।

क्या है लिपुलेख दर्रे का महत्व?

लिपुलेख दर्रा भारत, चीन और नेपाल की सीमा पर स्थित है। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित यह दर्रा लगभग 17,500 फीट की ऊंचाई पर है। यह न केवल व्यापार के लिहाज से बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए यह मार्ग बेहद अहम माना जाता है। यही वजह है कि भारत इसे रणनीतिक और सांस्कृतिक दोनों दृष्टियों से आवश्यक मानता है। ऐतिहासिक रूप से भी यह मार्ग भारत और तिब्बत के बीच व्यापार का प्रमुख रास्ता रहा है।

सुगौली संधि से जुड़ा विवाद

भारत-नेपाल सीमा विवाद की जड़ें 1816 की सुगौली संधि से जुड़ी हैं। एंग्लो-नेपाली युद्ध के बाद नेपाल और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच यह समझौता हुआ था। इस संधि में काली नदी को दोनों देशों की सीमा माना गया था। नेपाल का दावा है कि काली नदी का उद्गम लिपुलेख दर्रे से होता है, इसलिए यह इलाका उसका हिस्सा है। दूसरी ओर भारत का कहना है कि संधि के मुताबिक नेपाल का अधिकार केवल काली नदी के पूर्वी हिस्से तक सीमित है। यही कारण है कि कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा के स्वामित्व पर विवाद बना हुआ है।

भविष्य में क्या होगा समाधान?

भारत-नेपाल सीमा विवाद समय-समय पर दोनों देशों के रिश्तों में तनाव पैदा करता है। लिपुलेख दर्रे को लेकर चल रही तनातनी इसका ताजा उदाहरण है। हालांकि, दोनों देशों ने अतीत में कई बार बातचीत के जरिए विवाद सुलझाने की कोशिश की है। विशेषज्ञ मानते हैं कि राजनीतिक दावों और भावनात्मक बयानों से हटकर अगर ऐतिहासिक तथ्यों और संधियों के आधार पर चर्चा हो तो समाधान निकल सकता है। फिलहाल, भारत का रुख साफ है कि लिपुलेख दर्रा उसके नियंत्रण में रहेगा और यहां व्यापारिक गतिविधियां जारी रहेंगी।

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