Sunday, December 7, 2025

मालेगांव ब्लास्ट केस: प्रज्ञा ठाकुर ने कहा – ‘मुझसे नरेंद्र मोदी का नाम लेने को कहा गया’

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Hemant Raushan
Hemant Raushan
Delhi-based content writer at The Rajdharma News, with 5+ years of UPSC CSE prep experience. I cover politics, society, and current affairs with a focus on depth, balance, and fact-based journalism.

प्रज्ञा ठाकुर: मालेगांव ब्लास्ट केस से जुड़े एक चौंकाने वाले मोड़ में, भारतीय जनता पार्टी (BJP) की पूर्व सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने कहा है कि पूछताछ के दौरान उनसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ और RSS प्रमुख मोहन भागवत जैसे नेताओं के नाम लेने के लिए दबाव डाला गया था। उनका आरोप है कि जांचकर्ताओं का मकसद था उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से तोड़ना ताकि वह झूठे नाम लेकर मामले को एक खास दिशा में मोड़ दें। प्रज्ञा ठाकुर ने मीडिया से बातचीत में कहा, “मुझसे कहा गया, इन लोगों के नाम लो, तो पीटना बंद कर देंगे।” उन्होंने यह भी बताया कि पूछताछ के दौरान उन्हें इतना प्रताड़ित किया गया कि उनके फेफड़े की झिल्ली तक फट गई और उन्हें बेहोशी की हालत में अस्पताल ले जाया गया।

नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ समेत कई नेताओं का नाम लेने को कहा गया

मालेगांव केस में बरी होने के बाद प्रज्ञा ठाकुर ने यह भी दावा किया कि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी का नाम लेने के लिए इसलिए भी उकसाया गया क्योंकि वे उस समय गुजरात में रहती थीं। जांचकर्ताओं का तर्क था कि मोदी को मामले में घसीटकर राजनीतिक रूप से लाभ उठाया जा सकता है। प्रज्ञा ने बताया कि उनसे सिर्फ मोदी ही नहीं, बल्कि राम माधव और इंद्रेश कुमार जैसे वरिष्ठ भाजपा नेताओं के नाम भी लेने को कहा गया। उन्होंने कहा, “मुझे झूठ बोलने को मजबूर किया गया, लेकिन मैंने किसी का नाम नहीं लिया क्योंकि मैं झूठ बोलने में विश्वास नहीं रखती।”

कोर्ट का फैसला: सभी आरोपी बरी, सबूत नहीं थे

31 जुलाई 2025 को NIA की विशेष अदालत ने मालेगांव ब्लास्ट केस में फैसला सुनाते हुए प्रज्ञा ठाकुर सहित सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर सका। इसके चलते सभी को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया गया। इस केस में लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित भी आरोपी थे, जो उस समय सेना में कार्यरत थे। ATS ने उन्हें 4 नवंबर 2008 को गिरफ्तार किया था। कोर्ट के फैसले के बाद यह साफ हो गया कि पूरे मामले में पर्याप्त साक्ष्य नहीं थे।

मिलिंद जोशीराव ने भी लगाए थे ऐसे ही आरोप

प्रज्ञा ठाकुर अकेली नहीं हैं, जिन्होंने जांचकर्ताओं पर दबाव डालने का आरोप लगाया है। मिलिंद जोशीराव, जो इस केस में एक गवाह थे और अभिनव भारत ट्रस्ट के ट्रस्टी रहे हैं, उन्होंने भी कोर्ट में बताया था कि ATS अधिकारियों ने उनसे योगी आदित्यनाथ और दूसरे RSS नेताओं का नाम लेने को कहा था। बाद में मिलिंद अपने बयान से मुकर गए। ऐसे 39 गवाहों ने अपने बयान बदले, बाद में केस में एक के बाद एक गवाह लगातार पलटते गए.

मालेगांव ब्लास्ट: कब, क्या और कैसे हुआ?

यह मामला 29 सितंबर 2008 का है, जब महाराष्ट्र के मालेगांव के भीक्कू चौक में एक धमाका हुआ था। उसी दिन गुजरात के मोडासा में भी एक धमाका हुआ। मालेगांव में 7 लोगों की जान गई और दर्जनों घायल हुए। मोडासा धमाके में एक 15 साल के लड़के की मौत हुई। जांच में पहले हिंदू कट्टरपंथी संगठनों की भूमिका सामने आई। ATS ने शुरुआत में प्रज्ञा ठाकुर समेत 3 लोगों को गिरफ्तार किया। बाद में अभिनव भारत, हिंदू राष्ट्र सेना, राष्ट्रीय जागरण मंच और अन्य संगठनों के नाम भी सामने आए।

जांच में लगातार बदलते गवाह और ATS की भूमिका पर सवाल

जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, एक के बाद एक गवाह अपने बयानों से मुकरते गए। इससे यह सवाल उठने लगे कि क्या जांच एजेंसियों पर राजनीतिक या संस्थागत दबाव था। NIA ने केस को टेकओवर किया, लेकिन तब तक गवाहों की विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्न उठ चुके थे। प्रज्ञा ठाकुर ने इस बात पर भी सवाल उठाए कि उन्हें गैरकानूनी रूप से अस्पताल में रोका गया और इलाज के नाम पर हिरासत में रखा गया। यह बात पूरे मामले को और जटिल बना देती है।

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