नागपुर में बुधवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने विजयादशमी मनाई । शस्त्र पूजा के दौरान पहली बार महिला मुख्य अतिथि संतोष यादव मौजूद थी । संतोष दो बार माउंट एवरेस्ट फतेह करने वाली दुनिया की एक मात्र महिला हैं ।
संघ के दशहरा समारोह में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस, सरसंघचालक डा. मोहन भागवत मौजूद थे । मोहन भागवत ने अपनी स्पीच में एक बार फिर जनसंख्या नियंत्रण, महिला सशक्तिकरण, शिक्षा नीति जैसे मुद्दों का जिक्र किया । कहा- जनसंख्या नियंत्रण और धर्म आधारित जनसंख्या असंतुलन ऐसे मुद्दे हैं, जिसे लंबे समय तक नजरंदाज नहीं किया जा सकता ।
भागवत ने महिला मुख्य अथिति की मौजूदगी में एक घंटे तक स्पीच दी । कहा- जो सारे काम पुरुष करते हैं, वह महिलाएं भी कर सकती हैं । लेकिन जो काम महिलाएं कर सकती हैं, वो सभी काम पुरुष नहीं कर सकते । महिलाओं को बराबरी का अधिकार, काम करने की आजादी और फैसलों में भागीदारी देना जरूरी है ।
कौन है संतोष यादव ?
संतोष यादव पहली ऐसी महिला हैं, जिन्होंने दो बार माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई की है. उन्होंने पहली बार मई 1992 और दूसरी बार मई 1993 में एवरेस्ट चोटी फतह की और ऐसा कर उन्होंने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया । इसके अलावा संतोष कांगसुंग की तरफ से माउंट एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक चढ़ने वाली पहली महिला भी है ।
हरियाणा स्थित रेवाणी में साल 1968 में जन्मीं संतोष यादव, फिलहाल भारत-तिब्बत सीमा पुलिस में बतौर अधिकारी अपनी सेवाएं दे चुकी है । उन्होंने उत्तराखंड स्थित उत्तरकाशी नेहरू माउंटीनियरिंग कॉलेज से भी ट्रेनिंग ली थी ।
संतोष यादव ने कहा लोग पूछते थे क्या तुम संघी हो?
महाराष्ट्र स्थित नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विजयादशमी कार्यक्रम में इस बार पूर्व पर्वतारोही संतोष यादव, मुख्य अतिथि थी । इस दौरान एक संक्षिप्त संबोधन में संतोष यादव ने कहा कि हमारा सनातन धर्म और संस्कृति हमें पंचतत्वों में संतुलन सिखाती है ।हमें स्वस्थ रहने की जरूरत है ताकि हम सभी के लिए भलाई का काम कर सकें ।
संतोष यादव ने कहा- लोग मुझसे मेरे व्यवहार की वजह से पूछते थे कि क्या मैं संघी हूं ? उस वक्त मैं संघ को जानती तक नहीं था । यह मेरा प्रारब्ध है कि मैं आज आप के समक्ष यहां हूं । उन्होंने कहा कि संघ के स्वयंसेवक वसुधैव कुटुंबुकम की भावना से सभी के लिए काम कर रहे है ।
सन्तोष यादव ने आगे कहा- ” पूरे भारत ही नहीं, पूरे विश्व के मानव समाज को मैं अनुरोध करना चाहती हूँ कि वो आये और संघ के कार्यकलापों को देखे । यह शोभनीय है, एवं प्रेरित करने वाला है ।”
भागवत ने अपने भाषण में कहीं ये बातें
महिला सशक्तिकरण पर बात करते हुए भागवत ने कहा-“यह जरूरी है कि महिलाओं को सभी क्षेत्रों में बराबरी का अधिकार और काम करने की आजादी दी जाए । हम इस बदलाव को अपने परिवार से ही शुरू कर रहे है । हम अपने संगठन के जरिए समाज में ले जाएंगे। जब तक महिलाओं की बराबरी की भागीदारी निश्चित नहीं की जाएगी, तब तक देश की जिस तरक्की को हासिल करने की हम कोशिशें कर रहे हैं, उसे हासिल नहीं किया जा सकता ।
संघ ने पर्वतारोही संतोष यादव को अपने कार्यक्रम में चीफ गेस्ट बनाया है । कुछ हासिल करने वाली महिलाओं की उपस्थिति सुशिक्षित समाज का हिस्सा रहा है और डॉक्टर हेडगेवार के समय से ही यह संघ के कामों में प्रेरणा का जरिया रहा है । तब अनुसियाबाई काले हमारे कार्यक्रम में मौजूद रही थीं । तब की इंडियन वुमंस कॉन्फ्रेंस की चीफ राजकुमारी अमृत कौर भी हमारे शिविर का हिस्सा बनी थीं । दिसंबर 1934 में भी चीफ गेस्ट महिला थीं और यह तब से ही चला आ रहा है । इमरजेंसी के बाद अकोला में हुए संघ के कार्यक्रम में भी महिला चीफ गेस्ट थीं । उस विजयादशमी कार्यक्रम में औरंगाबाद की कुमुदताई रांगेनकर मुख्य अतिथि थीं ।”
संघ में महिलाओं की भूमिका की बात करते हुए भागवत ने कहा -“समाज महिला और पुरुष दोनों से बनता है। हम इस पर बहस नहीं कर रहे कि बेहतर कौन है, क्योंकि हम जानते हैं कि इन दोनों में से एक भी मौजूद न हो तो कोई समाज अस्तित्व में नहीं आ सकता है । कुछ भी सृजित नहीं किया जा सकता है । ये दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं और यही भारतीय फलसफा है । राष्ट्र निर्माण का काम अलग-अलग संस्थाएं महिलाओं और पुरुषों के लिए कर सकती हैं, लेकिन संघ द्वारा किए गए हर सामाजिक कार्य में महिलाएं और पुरुष मिलकर ही काम करते हैं । डॉक्टर साहब के समय चरित्र निर्माण को ध्यान में रखते हुए दो अलग यूनिट्स बनाए गए थे । लेकिन, हर काम में महिलाएं और पुरुष एकसाथ मिलकर काम करते आ रहे है ।”
समाज और मातृशक्ति पर भागवत ने कहा-“अगर किसी समाज को व्यवस्थित रहना है तो महिला और उसकी मातृ शक्ति को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है । हमें उन्हें मजबूत करने की आवश्यकता है । हम उन्हें मां कहते हैं, हम उन्हें जगत जननी मानते हैं । जब हम ऐसी चीजें मानते हैं तो यह समझ नहीं आता कि ऐसा क्या डर है जो हम उनकी गतिविधियों को सीमित कर देते हैं । और, बाद में जब विदेशी आक्रांता आते हैं तो ये सारी बाध्यताएं वैध हो जाती है । आक्रमणकारी चले जाते हैं, लेकिन हम ये प्रतिबंध चलाते रहते हैं। हमने महिलाओं को कभी आजाद नहीं किया ।
हम उन्हें जगत का निर्माण करने वाली मानते हैं, ये अच्छी बात है। लेकिन इसके चलते हमें उन्हें प्रार्थना गृह में ही कैद रखना होगा, यह अच्छा नहीं है । हम उन्हें पूजा घरों में बांधे रखते हैं या फिर घरों बंद रखकर उन्हें सेकेंड क्लास बताते रहें । इससे अलग हटकर हमें उन्हें घर और समाज में बराबरी का अधिकार देना होगा और फैसले लेने में आजादी देनी होगी ।
2017 में हमारी महिला कार्यकर्ताओं ने देश में मातृ शक्ति पर एक सर्वे किया । इसमें सभी वर्गों की महिलाओं को शामिल किया गया था । इस सर्वे की शुरुआत निर्मला सीतारमण ने की थी । इस सर्वे का नतीजा निकला था कि जो कुछ भी पुरुष कर सकते हैं, वह महिलाएं भी कर सकती है । लेकिन जो सारी चीजें महिलाएं कर सकती हैं, वह सब पुरुष नहीं कर सकते है । तो जरूरत है हर क्षेत्र में महिलाओं को काम की आजादी और बराबरी का अधिकार देने की ।”